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सामाजिक मर्यादा के कवि हैं गोस्वामी तुलसीदास

कालजयी कविता वह होती है जो सार्वकालिक हो। गोस्वामी तुलसीदास जी की कविताओं को किसी एक कालखंड में कैद नहीं किया जा सकता बल्कि उनकी कविताएं आज भी एक उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी मध्यकाल में रही हैं। प्रबंधकार कवि की भावुकता और रसात्मकता से ओतप्रोत गोस्वामी जी महाकवि हैं।

जिस तरह महा कवि वाल्मीकि के राम हैं, भवभूति के राम अलग किस्म के हैं। भवभूति के उत्तररामचरितम के राम रुदन करते हैं। विश्व साहित्य में यह अभूतपूर्व है। भवभूति ने दाम्पत्य प्रेम का जैसा उज्ज्वल और विषद चित्र खींचा है, वह दुर्लभ है। वाल्मीकि प्रभु श्रीराम के समकालीन थे। किंतु गोस्वामी तुलसीदास जी को अंतर्दृष्टि प्राप्त थी। प्रज्ञा चक्षु गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस को एक प्रबंध काव्य के रूप में रचा है।
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही। मरजादा पुनि तुम्हरी किन्ही। ढोल गवांर सूद्र पसु नारी नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।। समुद्र ने भयभीत होकर प्रभु श्री राम से कहा कि प्रभु ने अच्छा किया कि जो मुझे शिक्षा दी, किंतु मर्यादा, जीवों का स्वभाव भी आपकी बनाई हुई है। ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री, ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं। गीताप्रेस वाले संस्मरण में यही अर्थ किया है। ताड़ना का अर्थ शिक्षा से है। जबकि गोस्वामी तुलसीदास जी के अध्येता डॉ राम नरेश मिश्र मानस की व्याख्या करते हुए कहा करते थे कि अवधी बोली में ताड़ना का अर्थ देखने से होता है। आज भी लोग अवधी में बोलते हैं कि हम ओके ताड़त रहे अर्थात उसको देख रहे थे। ताड़ना का अर्थ उनके कार्यों को देखने से है न कि पीटने से है।
मेरी नजर में यह पंक्ति ही किसी अन्य कवि की है। गोस्वामी तुलसीदास जी प्रबंधकार हैं। माता सीता के प्रति उनका भाव बोध उज्ज्वल है। ईश्वर द्वारा प्राप्त अंतर्दृष्टि के द्वारा जो पाठ मैंने किया है वह यह है कि ढोल गंवार सूद्र पसु नारी/सकल उपासना क अधिकारी।। आप देख सकते हैं कि ढोल मध्यकाल में मंदिरों में कीर्तन का माध्यम था। ढोल की उपयोगिता आज भी सर्व विदित है। गंवार अर्थात गांव के लोग खेती किसानी करते थे जबकि शूद्र लोग समाज की सफाई के कार्य में सन्नद्ध थे और यह उनका वंशानुगत पेशा कदापि न था। बल्कि उनका कर्म आधारित सामाजिक पेशा था। नारी के प्रति गोस्वामी जी का सम्मान जग जाहिर है। इसलिए सर्वाधिक उपयुक्त पंक्ति यही है। गोस्वामी जी सामाजिक संरचना की भली भांति जानते थे। पूरे जीवन उन्होंने किसी का अपमान नहीं किया। गोस्वामी तुलसीदास जी सामाजिक मर्यादा के कवि हैं।
लेखक विनय कांत मिश्र/ दैनिक बुद्ध का संदेश

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