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अयोध्याउत्तर प्रदेशधर्म / ज्योतिषब्रेकिंग न्यूज़

शिव पार्वती के विवाह की कथा मंगलकारी है

दैनिक बुद्ध का संदेश
शिव आर्यों और अनार्यों दोनों के देवता हैं। भारत की सनातन परंपरा के अभीष्ट महादेव ही हैं। वे सर्व सुलभ हैं। वे भांग और धतूरे से प्रसन्न होने वाले हैं। उनसे थोड़ी सी दिल्लगी कीजिए तो भोलेनाथ तुरंत प्रसन्न हो जाएंगे। वे देवों के देव देवाधिपति महादेव हैं। वे त्रिकाल दर्शी हैं। वे प्रसन्न हो जाएं तो भस्मासुर को भी वरदान दे देते हैं।

रावण उनकी आराधना करके सोने की लंका का राजा बन जाता है। भोलेनाथ शिवत्व की शक्ति प्रदान करने वाले परम तत्व हैं। शव को शिव में परिवर्तित करने में वे अद्वितीय हैं। बिना शिव के कोई भी व्यक्ति शव है। शिव के इ की मात्रा से शव भी ईश्वरीय शक्ति में रूपांतरित हो जाता है। तब मनुष्य के आत्म में आत्मा का वास शिवत्व के कारण ही होता है। प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा में ऊर्जा शक्ति शिव के अर्द्धांगिनी वाले स्वरूप से आती है। तब एक परिवार की परिकल्पना साकार होती है। भारतीय सनातन की परंपरा में विवाह नाम की संस्था को पुष्पित पल्लवित करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की अवधारणा को ऐतिहासिक पौराणिक तत्व के रूप में श्रीरामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने रमाया। गोस्वामी तुलसीदास जी मानस में ही कहते हैं कि यह उमा संभु बिबाहु जे नर नारि कहहिं जे गावहीं। कल्यान काज विवाह मंगल सर्बदा सुखु पावहीं।। अभिप्राय यह कि तुलसीदास जी कहते हैं कि शिव पार्वती के विवाह की इस कथा को जो स्त्री पुरुष कहेंगे और गाएंगे, वे कल्याण के कार्यों और विवाहादि मंगलों में सदा सुख पाएंगे। अब आप देखिए तो गोस्वामी तुलसीदास जी यहां परिवार नाम की संस्था को बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए कभी वे शिव विवाह का सहारा लेते हैं तो कभी राम विवाह की संकल्पना को मूर्त रूप प्रदान करते हैं। शिव और राम दोनों की आराधना करके गोस्वामी तुलसीदास शैव और वैष्णव मतावलंबियों के बीच तत्कालीन धार्मिक संघर्ष को रोकते हैं और दोनों में समन्वय स्थापित करने में सफल होते हैं। तब राम और शिव के द्वारा वे सनातनी एकीकरण के अभियान में पूर्णतः सफल होते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी फिर लिखते हैं जेहि पर कृपा न करहि पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी। आगे फिर लिखते हैं कि सिव सेवा कर फल सुत सोई। अबिरल भगति राम पद होई।। संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी। एक बात जो ध्यान देने की है वह भगवान शिव के साथ नंदी बैल की पूजा। बैल भारतीय कृषक परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। परिवार को पालने के लिए अनाज की जरूरत होती है। तत्कालीन समाज में विवाह के बाद गृहस्थ जीवन के प्रवेश में बैल और हल दोनों की आवश्यकता होती थी। विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से ऐतिहासिक भावबोध के साथ ये ऐतिहासिक चरित्र हमें सत्मार्ग की तरफ प्रेरित करते हैं।
लेखक विनय कांत मिश्र/दैनिक बुद्ध का संदेश  सौरभ त्रिपाठी  

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