रामजी के वनवास और केवट प्रसंग की कथा सुनाई गई

गोरखपुर। गोला क्षेत्र के पोखरीगांव में चल रही श्री श्री लक्ष्मी महायज्ञ के सातवेँ दिन गुरुवार को रामकथा का मंचन भगवान श्रीराम, मैया सीता और लक्ष्मणजी की आरती से प्रारंभ हुआ। आज कथा वाचक हरिनारायणचार्य जी महाराज ने श्रीराम-निषादराज मिलन, केवट प्रसंग, दशरथ देवलोक गमन की कथा सुनाई। संग की शुरूआत सीता और रामजी के वन में चल रहे जीवन से हुई। जिनका आज राज्याभिषेक होने वाला था वो भगवान श्रीराम पत्थर के सिराहने और रेत के बिछौने पर सो रहे थे। भगवान श्रीराम को ऐसी अवस्था में देख लक्ष्मणजी की आंखों से आंसू बह निकले। अवधवासी भगवान श्रीराम को अवध छोड़ कर नहीं जाने देने की जिद पर अड़े थे, लेकिन भगवान श्रीराम को पिता को दिया हुआ वचन निभाना था। इसलिए भगवान श्रीराम अवधवासियों को सोता हुआ छोड़ कर वन की तरफ प्रस्थान कर जाते हैं। रास्ते में गंगाजी पड़ती हैं, भगवान श्रीराम सीताजी और लक्ष्मण को गंगाजी के गौरव के बारे में बताते हैं। यहीं पर प्रभु श्रीराम और निषादराज का मिलन होता है। श्रंगपुर नामक छोटे से गांव, भीलों की बस्ती, यहां पर दीन हीनों से प्रभु मिलन की अनोखी घटना घटी। भगवान श्रीराम को देख सभी लोग खुश हो जाते हैं और उनका जय जयकार करने लग जाते हैं। इसके बाद केवट प्रसंग को भी बहुत खूबसूरती से दिखाया गया। केवट भगवान श्रीराम को गंगा के उस पार छोड़ने के बदले में उनके चरण धोने की अनुमति मांगता है। रामजी के चरण धोने के बाद केवट अपना वादा निभाता है और भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण को गंगा के उस पार उतारता है। इसके आगे का भावुक प्रसंग देख दर्शकों की आंखे नम हो गई। वो प्रसंग था गंगा के पार छोड़ने के बाद का। गंगा पार उतरने के बाद भगवान श्रीराम असमंजस में पड़ जाते हैं कि केवट को इसके बदले में क्या दिया जाए। इस बारे में रामजी बहुत सोचते हैं, तब सीताजी ने अपनी अंगुली से अंगूठी निकालकर केवट को भेंट की। इस मौके पर मुख्य यजमान जितेंद्र दुबे, क्षेत्र के विधयाक राजेश त्रिपाठी, वेद प्रकाश मिश्र, रतन प्रकाश दुबे, संदीप दुबे, प्रदीप पांडेय सहित श्रोता मौजूद रहे।