जातिवाद से ऊपर और सर्वव्यापी हैं गोस्वामी तुलसीदास के राम
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दैनिक बुद्ध का संदेश
आज सुबह भ्रमण करते हुए मैंने देखा कि मोहल्ले में ही खेदू के घर श्रीरामचरित मानस का पाठ हो रहा है। खेदू जाति के धोबी हैं। उनके यहां गृह प्रवेश के अवसर पर श्रीरामचरित मानस का पाठ हो रहा था। श्री रामचरित मानस विमर्श का नहीं बल्कि लोक आस्था और विश्वास का काव्य है जहां लोक कल्याण की सरिता प्रवाहित होती है।
सुबह सड़कों की साफ सफाई करने वाले सफाई कर्मी भी आपस में एक दूसरे से राम राम कहते हुए एक दूसरे का अभिवादन कर रहे थे।
हाथ में झाड़ू लिए राम नाम का स्मरण सड़क की गरिमा में चार चांद लगाता है। मेरे और आगे बढ़ने पर संतोष पान वाले भी सीताराम कहकर ही मेरा अभिवादन करते हैं। प्रतिदिन सुबह की राम राम मन और मस्तिष्क को एक अलौकिक किस्म की शीतलता से ओत प्रोत कर देती है। घर में काम करने वाली महरिन लक्ष्मी भी जब घर पहुंचती है तो भैया राम राम ही कहती है।
बात यह है कि हिन्दी भाषी क्षेत्रों में राम राम जी कहकर मिलना, एक दूसरे के अभिवादन का तरीका है। गौरतलब है कि ये सभी लोग अति पिछड़ी और दलित उप बिरादरी के लोग हैं। ये उस दलित उप बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले लोग हैं जिन्हें कामगार और मजदूर तबके में परिगणित किया जाता है और उन्हें वोट बैंकों के रूप में तराशने की कवायद की जाती है। हालांकि उन्हें सियासी नादानी से मतलब नहीं क्योंकि तथाकथित इन नीची जाति के दिलों में प्रभु श्री राम का वास है। साथ ही उन्हें बौद्धिकों के विमर्शों से भी मतलब नहीं बल्कि उन्हें तो सनातन की परंपरा में व्याप्त भगवान श्री राम से मतलब है। वे तुलसी के राम को जानते हैं और अपने घर पर श्रीराम चरित मानस का पाठ करवाते हैं। सियासी रगड़ धुन और पूर्वाग्रह से अभिप्रेरित बौद्धिक जुगाली, भले ही भगवान श्री राम के होने पर प्रश्न चिन्ह लगाए लेकिन वे कोटि कोटि जन की आस्था के प्रतीक और उनके हृदय में निवास करने वाले भगवान श्री राम पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकते।
गोस्वामी तुलसीदास जी श्रीरामचरित मानस में कहते हैं कि सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई।। तहाँ बेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भांति बहु भाषा।। अर्थात यद्यपि प्रभु श्री रामचंद्र जी की प्रभुता को सभी ऐसी अकथनीय ही जानते हैं तथापि उसको कहे बिना कोई नहीं रहा। इसको इस तरह से समझना चाहिए कि भगवान श्रीराम की महिमा का पूरा वर्णन तो कोई कर नहीं सकता, परंतु जिससे जितना बन पड़े उतना भगवान श्री राम का गुणगान करना चाहिए। इसका कारण यह है कि प्रभु श्री राम के गुण गान रूपी भजन का प्रभाव बहुत ही अनोखा है, उसका विभिन्न प्रकार से शास्त्रों में वर्णन है। थोड़ा सा भी भगवान का भजन मनुष्य को सहज ही भव सागर से तार देता है। अब सवाल यह है कि थोड़ा सा भगवान का भजन क्या है। दरअसल सुबह की राम राम ही भगवान का थोड़ा सा स्मरण है। शैक्षणिक परिक्षेत्र में या कि सियासत की रोटियां सेकने वाले लोग भले ही कुछ कहें किंतु हकीकत यही है कि गोस्वामी तुलसीदास जी के राम सर्व व्यापी है। वे जातिवादी मनोवृत्ति से ऊपर, लोक कल्याण कारी हैं।
लेखक विनय कांत मिश्र/दैनिक बुद्ध का संदेश