गोस्वामी तुलसीदास आम जनता से जुड़े हुए कवि हैं
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दैनिक बुद्ध का संदेश : लोकभाषा ग्रामीण जीवन में रची बसी होती है। वही ग्राम्य भाषा लोक जीवन का आधार तत्व है। जिस तरह आज खड़ी बोली हिन्दी नागरी हिन्दी के रूप में विख्यात है ठीक उसी तरह मध्यकाल में संस्कृत अभिजात्य वर्ग की भाषा कही और समझी जाती थी। फारसी बड़े पैमाने पर भारतीय जीवन में दस्तक दे रही थी।
भोजपुरी में कबीर की डांट फटकार से जनता ऊब चुकी थी थी। ऐसे में तुलसी का उद्भव आम आदमी को तसल्ली देता है क्योंकि तुलसीदास ग्रामीण बोली अवधी में समाज के अंतिम आदमी तक भगवान श्री राम की कथा की व्याप्ति करते हैं। कबीर भोजपुरी के साथ भाषा के पंच तत्व की शिनाख्त करते हैं तो तुलसी संस्कृत भाषा के समक्ष अवधी की चुनौती पेश कर उससे धार्मिक जनजागरण का अभियान चलाते हैं। वहीं सूरदास ब्रज क्षेत्र की ग्रामीण भूमि की बोली ब्रजी को काव्यभाषा के रूप में ढालते हैं। कबीर, सूर, जायसी और तुलसी का अभियान बोली को भाषा के रूप में तब्दील करने का अभियान है। तब हिन्दी क्षेत्र की बोलियां व्यापक रूप ग्रहण करके हिन्दी भाषा का स्वरूप ग्रहण कर लेती हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि कबि न हाउं नहिं चतुर कहावाऊं । मति अनुरूप राम गुन गावऊँ ।। कहं रघुपति के चरित अपारा। कहं मति मोरि निरत संसारा।। अर्थात मैं न तो कवि हूं, न चतुर कहलाता हूं। अपनी बुद्धि के अनुरूप श्री राम जी के गुण गाता हूं। कहां तो श्री रघुनाथ जी का अपार चरित्र , कहां संसार में आसक्त मेरी बुद्धि है। आप देखिए तो पाएंगे कि गोस्वामी जी इस बात को मानस के ही प्रारंभ में कहते हैं कि मैं कवि नहीं हूं किंतु अपनी मति के अनुरूप भगवान श्री राम का गुण गाता हूं। किन कारणों से गोस्वामी जी को ऐसा कहना पड़ा। दरअसल जिस समाज में गोस्वामी तुलसीदास जी श्री राम कथा का गुणगान कर रहे थे, वह युग धार्मिक कृषक संस्कृति का था जिसमें गोस्वामी जी यदि खुद को कवि कहते तो वे आम जनता से दूर रहते। हालांकि उनके मन मस्तिष्क में कवि परंपरा समाहित है। इस तरह तो वे कवि के अघोषित रूप में अत्यंत विनम्रता के साथ वे अपनी बात रखते हैं। ऐसा कहकर वे आम जनता के साथ भक्ति का तादात्म्य स्थापित करते हैं। वे लिखते हैं कि कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहं हित होई।।अर्थात कीर्ति, कविता और संपत्ति वही उत्तम है जो गंगा जी की तरह सबका हित करने वाली हो। जनता से जुड़कर गोस्वामी तुलसीदास जी कविता का उद्देश्य मां गंगा जी की तरह सभी का हितकारक बतलाते हैं।
लेखक विनय कांत मिश्र/दैनिक बुद्ध का संदेश