सम्पादकीय संकटमोचन हनुमानाष्टक को गोस्वामी तुलसीदास ने ही रचा था
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गोस्वामी तुलसीदास जी सन 1511 ईस्वी में भारत भूमि में अवतरित जबकि सन 1623 ईस्वी को काशी में उन्होंने शरीर त्याग दिया।
गोस्वामी तुलसीदास जी कुल मिलाकर 112 वर्ष तक भारत भूमि पर रहे। नियम, संयम और तपोबल से ही इतना दीर्घ जीवन उन्हें मिला। आज 50 , 60 वर्ष तक आते आते आदमी न जाने कितनी व्याधियों से ग्रस्त हो जाता है ऐसे में गोस्वामी जी की 112 वर्ष की दीर्घकालिक जीवन यात्रा में तमाम उतार चढ़ाव भी आए रहे होंगे। भगवान श्रीराम के प्रति समर्पण की पराकाष्ठा और दीर्घकालिक जीवनानुभव उन्हें विलक्षण प्रतिभा से युक्त वंदनीय बनाता है।
गौरतलब है इतिहास में गोस्वामी तुलसीदास के जन्म से लेकर मृत्यु तक का समय दिल्ली पर लोदी वंश के सिकंदर लोदी से लेकर मुगल वंश के जहांगीर तक के शासन काल का समय है। सिकंदर लोदी का शासन हिंदुओं पर हुए जुल्म को दर्शाता है। इब्राहिम लोदी को पराजित कर बाबर भारत पर आक्रमण करता है और भारत पर कब्जादार बनता है। हुमायूं के पतन और शेरशाह सूरी के शासन को भी गोस्वामी तुलसीदास ने देखा था। शेरशाह सूरी की मृत्यु ने हुमायूं की तकदीर का दरवाजा एक बार फिर खोल दिया। अकबर बादशाह के दीर्घकालिक शासन को भी गोस्वामी तुलसीदास ने देखा था।
अकबर की मंशा थी कि गोस्वामी तुलसीदास उनकी स्तुति में काव्य रचना करें। किंतु अब्दुर्रहीम खानखाना के मनाने के बाद भी गोस्वामी जी ने सीधा मना कर दिया। फिर क्या था। अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास को 40 दिनों के लिए नजरबंद कर दिया। वहीं गोस्वामी तुलसीदास जी ने संकट मोचक हनुमानाष्टक की भी रचना की।
गोस्वामी तुलसीदास जी की कविताएं सिर्फ भक्ति को ही नहीं दर्शाती बल्कि उनका काव्य एक प्रतीक अर्थ को ध्वनित करते हुए सन 1511 से लेकर 1623 ईस्वी तक के भारत का ऐतिहासिक दस्तावेज है। रावण भले ही भगवान श्रीराम के युग में था किंतु मध्यकाल में भी जोर और जुल्म की कहानी चलती रहती थी। यह भी ऐतिहासिक सत्य है कि अयोध्या में भगवान श्री राम का मंदिर ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में मंदिरों का विध्वंस मध्यकालीन त्रासदी है। संकटमोचन हनुमानाष्टक मध्यकाल से लेकर आज तक भारत की जनता में उत्साह का समावेश करती है।
लेखक विनय कांत मिश्र/दैनिक बुद्ध का सन्देश