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भरत चला रे भैया राम को मनाने, मानस पाठ का पाचवा दिन, सोनभद्र

भरत चले चित्रकूट श्री राम को मनाने - मानस पाठ में हुआ रुद्राभिषेक - श्रद्धालुओं ने की श्री राम दरबार की मंगला आरती - मानस पाठ के पांचवे दिन श्री राम दरबार का हुआ भव्य श्रृंगार। । नगर के आर.टी.एस. क्लब मैदान में चल रहे श्री रामचरितमानस नवाह पाठ महायज्ञ के पांचवें दिन प्रभु श्री राम दरबार का भव्य श्रृंगार राकेश त्रिपाठी ने किया। इसके बाद समिति के अध्यक्ष सतपाल जैन एवं महामंत्री सुशील पाठक सहित अन्य श्रद्धालुओं ने प्रभु श्री राम दरबार की मंगला आरती की। इसके पश्चात मुख्य यजमान अजय शुक्ला ने धर्मपत्नी माधुरी शुक्ला संग रुद्राभिषेक किया। वही पांचवें दिन पाठ करते हुए काशी से पधारे आचार्य सूर्य लाल मिश्र जी ने कहां कि भगवान राम के वनवास के बाद चक्रवर्ती सम्राट महाराजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात ननिहाल से भरत एवं शत्रुघ्न को बुलवाया जाता है अयोध्या लौट कर दोनों भाई भगवान राम लक्ष्मण सीता के वनवास से अवगत होते हैं और मां कैकेई को अपशब्द कहते हुए बनवास की दोषी मंथरा को दंड देते हैं। इसके पश्चात चक्रवर्ती सम्राट महाराजा दशरथ का अंतिम संस्कार करते हैं। इसके बाद माताओं एवं गुरु वशिष्ठ के परामर्श से भरत एवं शत्रुघ्न गुरु माताओं सहित चित्रकूट पहुंचते हैं, काफी अनुनय विनय के पश्चात जब राम अयोध्या लौटने के लिए तैयार नहीं होते हैं तो उनकी चरण पादुका लेकर भरत अयोध्या के लिए प्रस्थान करते हैं। वही एक दिन पूर्व आयोजित रात्रि प्रवचन के प्रथम सत्र में गोरखपुर से पधारे प्रसिद्ध कथा वाचक हेमंत त्रिपाठी ने कहां कि कैकेई द्वारा राजा दशरथ से दो वरदान मांग कर भगवान राम को 14 वर्षों का वनवास दिला दिया गया उन्होंने कहा सुना हूं प्राण प्रिय भागव जी का। देहु एक वर भारतहि रोका। मांगहूं इसर कर जोरी। परवहु नाथ मनोरथ मोरी। इस दोहे के अनुसार रामजी आजीवन वनवासी बन जाते हैं लेकिन शिव की कृपा से माने गए वरदान में परिवर्तन हो गया क्या क्या ही ने कहा तापस वेष विशेष उदासी। चौदह वरिस राम वनवासी। यानी राम जी केवल 14 वर्ष के लिए ही वनवासी हो क्योंकि जिस दिन कैकई ने वरदान मांगा था उस दिन से रावण की आयु मात्र 14 वर्ष ही शेष बचा था। वहीं प्रवचन के दूसरे सत्र में जमानिया गाजीपुर से पधारे पंडित अखिलेश चंद्र उपाध्याय ने संसार में सुखी कैसे रहा जा सकता है इस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जहां तहं मीर अगाधा। जिमी हरी शरण न एकउ बाधा। बताएं कि संसार के सभी प्राणी सुख चाहते हैं लेकिन सुख मिलता कहां है। सब सुख लइई तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना।। भगवान की शरण में जाने का तरीका आ जाए और उनको अपना रक्षक मान लेने से चारों तरफ सुखी हो जाता है। वही श्री राम कथा की तृतीय सत्र में जौनपुर से पधारे प्रसिद्ध कथा वाचक प्रकाश चंद्र विद्यार्थी ने केवट प्रसंग पर व्याख्यान देते हुए बताया कि मांगी नाव केवट आना। कहीं तुम्हारे मरम में जाना। यानी पूर्व जन्म के मर्म को केवट जानता था गौतम की पत्नी अहिल्या के उधार श्री रामचंद्र ने किया था। इसलिए उसे डर था कि भगवान श्री राम के चरणों में पड़ते ही कहीं वह स्त्री न बन जाए। बाद में फिर भगवान राम का भरोसा पाकर केवट कठौती में अपने घर से जल लेकर आया इसके बाद भगवान श्रीराम का चरण धोकर अपने परिवार सहित पितरों को भी तर कर दिया। मंच का संचालन संतोष कुमार द्विवेदी ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से समिति के अध्यक्ष सतपाल जैन, महामंत्री सुशील पाठक, सदर विधायक भूपेश चौबे, ब्लॉक प्रमुख अजीत रावत, अशोक मिश्रा, रविंद्र पाठक, सुदीप शुक्ला, महेश दुबे, किशोर केडिया, नरेंद्र गर्ग, संगम गुप्ता, मुरली अग्रवाल सहित भारी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।

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