सिद्धार्थनगर : अवशेष प्रबंधन के बारे में किसानों को किया गया जागरूक
दैनिक बुद्ध का संदेश
भनवापुर/सिद्धार्थनगर। गाँव चरगवां, विकास खण्ड बढ़नी में इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन योजना के अंतर्गत आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र सोहना सिद्धार्थनगर के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन पर गाँव स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में केन्द्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ प्रदीप कुमार ने फसल अवशेष के जलाने से पर्यावरण में कार्बनऑक्साइड, कार्बनमोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, सूक्ष्म कण जैसे हानिकारक पदार्थ घुल कर पशुओ एवं मनुष्यों में स्वासथ्य सम्बन्धी समस्याएं होती हैं इसलिए किसान भाई फसल अवशेष नहीं जलाये।
कृषि प्रसार वैज्ञानिक डॉ एस एन सिंह नें किसानों को बताया फसल अवशेषों को खेत में ही डिकम्पोज़र की सहयता से सड़ाये। 25 लीटर पानी में 1 से 2 किलोग्राम गुड़ को मिलाकर हल्की आंच पर उबालें, उबालनें के बाद ठण्डा करें इसके बाद डिकंपोज़र की एक कैप्सूल को घोलें और फिर घोल को 3 से 4 दिन के लिये रख दें इसके बाद 10 लीटर प्रति एकड़ प्रयोग करें जिससे 20 से 25 दिन में फसल अवशेष सड़कर खाद बन जायेगा। बीज वैज्ञानिक डॉ सर्वजीत ने बताया की एक टन धान अवशेष में लगभग 5.5 किलोग्राम नत्रजन, 2.3 किलोग्राम फास्फोरस, 2.5 किलोग्राम पोटाश और 1.2 किलोग्राम सल्फर और 400 किलोग्राम कार्बन होता हैं जो फसल अवशेष जलाने से नष्ट हो जाते हैं यदि किसान धान के अवशेष को प्रभावी तरीके से अपने खेत में ही कृषि यंत्रो से या डीकम्पोज़र की सहयता से खेतों में ही मिलाकर सड़ाते हैं तो अगली फसल की शुरुआती अवस्था में लगभग 40 प्रतिशत नत्रजन, 30 से 35 प्रतिशत फासफोरस, 80 से 85 प्रतिशत पोटाश और 40 से 45 प्रतिशत सल्फर की पूर्ति हो जाती है इसलिए किसान भाई फसल अवशेष न जलाकर खेत में ही सड़ाये। प्रगतिशील किसानों ने भविष्य में भी फसल अवशेष को ना जलाने के लिए सभी किसान भाई के साथ ही संकल्प लिया कि हम फसल नहीं जलाएंगे। कार्यक्रम में मलहू, हकीमुल्लाह, शिवपूजन, तुलशीराम, परशुराम, धर्मेंद्र, राधेशयाम, नीबर, राजकुमार, पलटन आदि किसान उपस्थित रहे।