गोरखपुर        महराजगंज        देवरिया        कुशीनगर        बस्ती        सिद्धार्थनगर        संतकबीरनगर       
उत्तर प्रदेशसिद्धार्थनगर

श्रीमद्भागवत कथा सुनने से जीव का होता है कल्याण: अशोक दास

ग्राम- तिघरा में 9 दिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा का भव्य आयोजन

सिद्धार्थनगर। श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिवस गुरुवार को अयोध्या धाम से पधारे भागवत भूषण अशोक दास जी महाराज ने भागवत पुराण के महत्व और विभिन्न प्रसंगों का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया। कहा कि श्रीमद्भागवत कथा सुनने से जीव का कल्याण होता है और मोक्ष प्राप्त होता है। भक्तों को भागवत महात्म्य, सुखदेव जी और राजा परीक्षित के बीच संवाद तथा भगवान कृष्ण की लीलाओं का श्रवण कराया। कथा व्यास जी उसका बाजार विकास क्षेत्र के ग्राम- तिघरा में आयोजित संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिवस पर श्रद्धालुओं की भक्ति रस से सराबोर कर रहे थे। उनका साथ दे रहे थे शुभम कुमार उपाध्याय तथा माहौल को संगीतमय बनाने में जुटे थे राजन तिवारी, चन्दन दास, व शुभम मिश्र। जबकि तिघरा निवासी पं दयानन्द दूबे जी द्वारा श्रीमद्भागवत का विधिवत पाठ किया जा रहा है। भागवत भूषण अशोक दास जी महराज ने कहा कि एक समय की बात है, नैमिषारण्य तीर्थ में शौनकादिक 88 हजार ऋषियों ने पुराणवेत्ता सूतजी से पूछा- हे सूतजी, इस कलियुग में वेद-विद्यारहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिलेगी तथा उनका उद्धार कैसे होगा। हे मुनिश्रेष्ठ, कोई ऐसा व्रत अथवा तप कहिए जिसके करने से थोड़े ही समय में पुण्य प्राप्त हो तथा मनवांछित फल भी मिले।सर्वशास्त्रज्ञाता श्री सूतजी ने कहा हे वैष्णवों में पूज्य! आप सबने प्राणियों के हित की बात पूछी है। अब मैं उस श्रेष्ठ व्रत को आपसे कहूंगा, जिसे नारदजी के पूछने पर लक्ष्मीनारायण भगवान ने उन्हें बताया था। कथा इस प्रकार है। एक समय देवर्षि नारदजी दूसरों के हित की इच्छा से सभी लोकों में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुंचे। यहां अनेक योनियों में जन्मे प्रायरू सभी मनुष्यों को अपने कर्मों के अनुसार कई दुखों से पीड़ित देखकर उन्होंने विचार किया कि किस यत्न के करने से प्राणियों के दुखों का नाश होगा। ऐसा मन में विचार कर देवर्षि नारद विष्णुलोक गए। नारदजी ने कहा- हे भगवन! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती, आपका आदि-मध्य-अंत भी नहीं हैं। आप निर्गुण स्वरूप सृष्टि के कारण भक्तों के दुखों को नष्ट करने वाले हो। आपको मेरा नमस्कार है। नारदजीसे इस प्रकार की स्तुति सुनकर विष्णु बोले- हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या है। आपका किस काम के लिए यहां आगमन हुआ है? निरूसंकोच कहें। तब नारदमुनि ने कहा- मृत्युलोक में सब मनुष्य, जो अनेक योनियों में पैदा हुए हैं, अपने-अपने कर्मों द्वारा अनेक प्रकार के दुखों से पीड़ित हैं। हे नाथ! यदि आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए उन मनुष्यों के सब दुख थोड़े से ही प्रयत्न से कैसे दूर हो सकते हैं। कथा के प्रथम दिवस का प्रारंभ दीप प्रज्ज्वलन, भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ हुई। इस दौरान मुख्य यजमान श्रीमती कमलावती देवी एवं पं जनार्दन दूबे सहित पं गिरजा प्रसाद दुबे, व आयोजक श्रीमती नीलम एवं नरेन्द्र दूबे, श्रीमती कीर्ति एवं मानवेन्द्र दूबे, अमरेन्द्र दूबे व परशुराम दूबे, श्रीमती पूजा त्रिपाठी, श्रीमती विमलेश एवं धर्मेन्द्र जी दूबे, अर्पित, अर्पिता, अच्युत द्विवेदी (अंश) व बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!