गोरखपुर : शंकराचार्य जयंती समारोह का आयोजन हुआ सम्पन्न
दैनिक बुद्ध का सन्देश
गोला/गोरखपुर। गोला विकास खंड के डड़वापार में सरस्वती शिशु सेवाश्रम में अक्षय सन्निधानम प्रयागराज द्वारा एक सप्ताह से मनाये जा रहे शंकराचार्य जयन्ती समारोह का आयोजन हुआ सम्पन्न। इस दौरान प्रतिदिन आद्य शंकराचार्य द्वारा रचित श्लोकों का पाठ पंडित तारकेश्वर पाण्डेय के नेतृत्व में वेदनिष्ठ ब्राह्मणों द्वारा किया गया।समारोह के शुभारंभ व समापन में अनंत श्री विभूषित पूज्य दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती जी के संदेश को श्रद्धालुओं को बताया गया।इस दौरान नारायण स्वामी जी ने कहा कि आचार्य शंकर भगवत्पाद की जयन्ती से दो दिन पूर्व आचार्य परशुराम की जयन्ती आती है। इस उपलक्ष्य में सर्वाधिक साम्य वाली एक बात स्मरण रखनी चाहिए कि दोनों ही श्रीविद्या के उपासक हैं। शंकर भगवत्पाद को षण्मत स्थापकाचार्य कहा जाता है।
षण्मत अर्थात छः मत अथवा छः सम्प्रदाय। गृहस्थों के लिए पञ्चदेवोपासना और संन्यासी के लिए प्रणवोपासना। उन्होंने समस्त देवताओं और सम्प्रदायों का गणेश सूर्य विष्णु शिव और शक्ति में समाहार कर गृहस्थों से इन पांचों की उपासना करने को कहा। पञ्चदेवों की स्तुति में आचार्य शंकर भगवत्पाद द्वारा रचित 100 से अधिक स्तोत्र उपलब्ध हैं। जिनमें कुल 1339 श्लोक हैं। इन 100 में से 31 स्तोत्र केवल शक्ति की स्तुति में हैं जो 632 श्लोकों में निबद्ध हैं। स्तोत्रों और श्लोकों की संख्या की दृष्टि से शिव दूसरे क्रम में हैं जिनके लिए आचार्य शंकर भगवत्पाद ने 20 स्तोत्र और 479 श्लोक समर्पित किया है।भगवान आद्यशङ्कराचार्य शिवके अवतार है तो भगवान परशुराम शिव के शिष्य हैं। दोनों श्रीविद्या के आचार्य हैं और दोनों ही वेद एवं तन्त्र दोनों मार्गों के समन्वयक हैं।
फिर भी भगवान परशुराम का झुकाव तन्त्र की ओर अधिक प्रतीत होता है।परशुराम पद्धति श्रीविद्या साधना की प्रमुख पद्धतियों में अग्रगण्य है ।जिसका मुख्य ग्रन्थ है परशुराम कल्पसूत्र। कल्पसूत्र प्रक्रियात्मक विधि को। जैसे वैदिक प्रक्रियाओं हेतु शतपथ ब्राह्मण गोपथ ब्राह्मण और कात्यायन गृह्यसूत्र इत्यादि हैं उसी प्रकार श्रीमाता की तान्त्रिक उपासना हेतु परशुराम कल्पसूत्र है।कार्यक्रम में मुख्य रूप से संतोष कुमार दुबे प्रदीप पाण्डेय ओमप्रकाश पाण्डेय अटल बिहारी दुबे पं गंगा पाण्डेय पं नवीन पाण्डेय सहित आदि लोग मौजूद थे।