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तुलसीपुर : पीर रतननाथ की शोभायात्रा देवीपाटन पहुंची

दैनिक बुद्ध का संदेश
तुलसीपुर,बलरामपुर। नेपाल दांग चौखड़ा से रतननाथ योगी जी की शोभायात्रा नवरात्र के पांचवें दिन रविवार को शक्तिपीठ देवीपाटन पहुँची। भारत-नेपाल की सीमा पर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर दोनों देशो की धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सम्बन्धों की प्रगाढ़ता की निशानी है। हर साल यहां चैत्र नवरात्र में नेपाल से बाबा रतननाथ की ऐतिहासिक पात्र देवता के रूप में शोभायात्रा आती है जो देवीपाटन मंदिर पर आकर ठहरती है।

यह यात्रा न केवल भारत-नेपाल के लिए बल्कि सात समन्दर पार रहने वाले लोगों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र बनी।नेपाल के दांग से अमृतकलश यात्रा हर साल निकलती है। शोभायात्रा के दौरान श्रद्धालु अपने आराध्य देवता और अक्षयपात्र के साथ पैदल भारत आते हैं। इस यात्रा में नौ दिन का समय लगता है। जनकपुर महादेव मुक्तेश्वर नाथ मन्दिर पर दो दिन ठहरकर देवीपाटन के लिए रवाना हो जाते हैं।सिद्ध पीर बाबा रतननाथ नेपाल राष्ट्र के दॉग के राजा और गुरू गोरक्षनाथ के भी शिष्य थे। कहा जाता है कि इन्होंने ही शक्तिपीठ देवीपाटन का निर्माण कराया था। जनश्रुति है कि मां पाटेश्वरी की पूजा के लिए बाबा प्रतिदिन दॉग से यहां आते थे। माता पाटेश्वरी के अनन्य भक्त बाबा रतननाथ सात सौ वर्षो तक जिन्दा थे। बाबा के गोलोकवासी होने के बाद गुरूगोरक्षनाथ द्वारा दिए गए अमृत कलश को बाबा रतननाथ के प्रतिनिधि के रूप में नेपाल के दांग से देवीपाटन लाया जाता है। बताते हैं इस अमृतकलश के दर्शनमात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसीलिए इस कलश के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रृद्धालु पहुंचते हैं।51 शक्तिपीठों में से एक देवीपाटन शक्तिपीठ की देशभर में बहुत मान्यता है। पीर रतननाथ बाबा गोरक्षनाथ के भी शिष्य थे। बाबा गोरक्षनाथ ने पीर रतननाथ को एक अक्षयपात्र दिया था। इसी अक्षयपात्र को हर साल नेपाल से देवीपाटन मंदिर में बड़ी धूमधाम से लाया जाता है। यह सिलसिला विक्रम संवत 809 से शुरू हुआ था। शोभायात्रा प्रति वर्ष चैत्र नवरात्र के पंचमी के दिन शक्तिपीठ देवीपाटन पहुंचती है। बताया जाता है कि बाबा रतननाथ आठ प्रकार के सिद्धियों के स्वामी थे। उन्होंने विश्व भ्रमण के दौरान मक्का-मदीना में मोहम्मद साहब को भी ज्ञान दिया था। तब मोहम्मद साहब बाबा रतननाथ से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा रतननाथ को पीर की उपाधि दी। इसलिए इन्हें सिद्ध पीर बाबा रतननाथ के नाम से जाना जाता है।
बाक्स………….नेपाल के पुजारी संभालते हैं कमान
शिवावतार गुरु गोरक्षनाथ के शिष्य रतननाथ की पूजा से मां पाटेश्वरी इतनी प्रसन्न हुई कि इनसे वरदान मांगने को कहा। तब रतननाथ ने कहा माता मेरी प्रार्थना है कि यहां आपके साथ मेरी भी पूजा हो। देवी ने उन्हें मनचाहा वरदान दे दिया। तभी से मां पाटेश्वरी मंदिर प्रांगण में दलीचा में अमृतकलश को स्थापित कर नवमी तक उनकी पूजा होती है। दलीचे में चैत्र नवरात्रि की पंचमी से लेकर नवमी तक रतननाथ बाबा की पूजा होती है। इनकी पूजा के दौरान घंटे व नगाड़े नहीं बजाए जाते है। मां पाटेश्वरी की पूजा सिर्फ रतननाथ जी के पुजारियों द्वारा ही की जाती है। शोभायात्रा के साथ आए पुजारी पांच दिनों तक मंदिर के पुजारियों को विश्राम देकर पूजा की कमान खुद संभालते हैं।शोभायात्राa स्थानीय नकटी नाले पर विश्राम कर प्रातः काल नगर से होते हुए देवीपाटन पहुँची उक्त अवसर पर सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम के साथ गणमान्य नागरिक विधायक कैलाश शुक्ला पूर्व सांसद दद्दन मिश्रा राजनैतिक सामाजिक संस्था के अन्य लोग तथा दूरदराज से आये नरनारी जयकारा लगाते हुए चल रहे थे।देवीपाटन प्रवेश द्वार पर महन्थ मिथिलेश नाथ योगी अपने शिष्यों के साथ अमृतकलश की अगवानी कर स्वागत किया तथा पूजन अर्चन के बाद प्रसिद्ध दलीचे में उन्हें स्थापित किया।

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