सम्पादकीय — सोहर छंद में नहछू को तुलसीदास ने रचा

गोस्वामी तुलसीदास गौतम बुद्ध के बाद सबसे बड़े धार्मिक महानायक थे। जहां गौतम बुद्ध हिंसक हो चले समाज को शांति और अहिंसा का मार्ग दिखलाते हैं वहीं तुलसीदास , मध्यकालीन हिन्दू समाज में धार्मिक परिवर्तन के तूफानी साजिशों पर विराम चिह्न लगाते हैं। कबीर हिंदू और मुसलमान दोनों नहीं हैं। दोनों की कुरीतियों पर दोनों संप्रदाय लोगों को फटकारते हैं। वे हिंदू और मुसलमान हैं भी और नहीं भी हैं । किंतु गोस्वामी तुलसीदास सनातनी परंपरा को अंगीकृत करने वाले और उसका व्यापक रूप से प्रचार प्रसार करने वाले लोक नायक हैं। बुद्ध शांत हैं, कबीर गंभीर और निराले हैं वहीं तुलसी अत्यंत विनीत मुद्रा में परम ज्ञानी और परम यशस्वी और भाषा के पारखी हैं।
तुलसीदास लोक में व्याप्त सभी रीतियों से सुपरिचित कवि हैं। भक्ति उनका हथियार है जिसे वे अपनी पैनी बुद्धि से तराशते हैं। अवधी बोली को ब्रज बोली से आगे का रास्ता दिखाते हैं जहां अवधी, बोली के मार्ग से अवधी भाषा का परिमार्जन ग्रहण करती है । जायसी अवधी के युवा कवि हैं तो तुलसी प्रौढ़ कवि हैं जहां अवधी भाषा का चरम निदर्शन भारतीय अस्मिता की सांस्कृतिक रूपरेखा तय करता है; और तब भगवान श्रीराम की कथा व्यक्ति के आत्म तत्व के शुद्धिकरण का माध्यम बन जाती है। गोस्वामी तुलसीदास को मांगलिक अवसरों का पूरा भान है। अवधी क्षेत्र में विवाह और यज्ञोपवीत के अवसर पर पैर के नाखून काटे जाने का पारंपरिक संस्कार है। इसे नहछू कहते हैं। इस अवसर पर महिलाएं लोक शैली में सोहर गाती हैं। इस सोहर में भद्दी भद्दी गालियां दी जाती हैं। गोस्वामी तुलसीदास का आदर्शवादी मन ऐसे गीतों को सुनकर व्यथित होता तो तत्कालीन ग्रामीण समाज के मार्गदर्शक गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान श्री राम को माध्यम बनाकर उनके विवाह के पूर्व नाखून काटते समय राम लला नहछू लिखा। भगवान राम के बहाने एक शालीन और संयत समाज में भद्दी गालियों का प्रचलन रोका। जितने भी और जिस भी तरह से समाज को सचेत किया जा सकता गोस्वामी तुलसीदास जी ने तत्कालीन सनातनी समाज का जन जागरण किया। वे लिखते हैं आज अवधपुर आनंद नहछू राम कहो। इस तरह गोस्वामी तुलसीदास जी ने 40 सोहर छंदों में श्री राम कथा को विविध रूपों में जनता के समक्ष प्रस्तुत किया।
लेखक विनय कांत मिश्र/दैनिक बुद्ध का संदेश