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सिद्धार्थनगर : भारतीय पराक्रम की नई इबारत लिख गया 16 दिसंबर 1971

कर्सर..............13 दिन, 93000 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों का भारत के सामने समर्पण, और एक नए देश बांग्लादेश का उदय, ऐसा था भारतीय पराक्रम

दिलीप श्रीवास्तव/दैनिक बुद्ध का सन्देश
डुमरियागंज,सिद्धार्थनगर। 16 दिसंबर 1971, भारतीय इतिहास का वो स्वर्णिम दिन है ज़ब पूरी दुनिया ने भारतीय शौर्य और पराक्रम को देखा था। 1947 में देश को आजादी मिलने के महज 25 साल के अंदर भारत ने 4 लड़ाईयाँ लड़ीँ, 1948 में पाकिस्तानी कबाईलियोँ से, 1962 में विश्वासघाती चीन से, 1965 में पाकिस्तान से और फिर 1971 में पाकिस्तान से ही। भारत पूरे विश्व का संभवतः एकमात्र ऐसा देश है जिसने आजादी के बाद इतने कम समय में 4 लड़ाईयाँ लड़ी। 16 दिसंबर 1971 को पूरे विश्व ने भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस को देखा तो साथ ही भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की नीतियों का लोहा भी माना। 3 दिसम्बर 1971 को शुरू हुआ ये युद्ध महज 13 दिनों में भारतीय सेना ने विजय हासिल करके खत्म कर दिया। इस युद्ध में पाकिस्तानी जनरल नियाजी ने अपने 93000 हज़ार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर दस्तखत किया।

दस्तखत करने से पहले पाकिस्तानी जनरल नियाजी ने अपना बैज उतार कर मेज पर रख दिया और अपनी रिवाल्वर लेफ्टिनेंट जनरल जगदीश अरोड़ा के हवाले कर दिया, फिर सभी पाकिस्तानी सैनिकों ने अपनी बन्दूखें ज़मीन पर रख कर अपने घुटने टेक दिये। इसी दिन एक नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ द्यविश्व के इतिहास में महज 13 दिनों में एक नया देश बना कर उसको मान्यता दिलवा देने का गौरव संभवतः सिर्फ और सिर्फ भारत को हासिल है। इस विजय दिवस के बारे में ज़ब हमने डुमरियागंज क्षेत्र के युवाओं से बात की तो उनका सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया द्यअखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के जिलाध्यक्ष सुगंध अग्रहरि कहते हैँ कि 1971 का युद्ध भारत ने विपरीत परिस्थितियों में रहने के बावजूद जीता था, 1971 से पहले हम 1965 में भी पाकिस्तान को हरा चुके थे इतने कम समय में युद्ध लड़ना और महज 13 दिनों में पाकिस्तान के 93000 सैनिकों से आत्म समर्पण करवा कर एक नए देश के रूप में बांग्लादेश को स्थापित करना ये सिर्फ और सिर्फ भारतीय सैनिक ही कर सकते थे,ऐसे वीर सैनिकों को शत शत नमन द्यबढ़नी चाफा में अपनी मेडिकल शॉप चला रहे सुजीत ने भी कहा कि ज़ब भी 16 दिसम्बर का दिन आता है, हम अपने साथियों के साथ भारतीय सैनिकों के गौरवशाली इतिहास के बारे में चर्चा करते हैँ और अपने शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैँ। सुजीत अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैँ कि भारतीय सैनिकों का पराक्रम पूरा विश्व आज़ादी के बाद से ही देखता आ रहा है। चाहे 1948 का युद्ध हो 1962,1965 या 1971 का युद्ध हो या फिर आज का समय हो, हमें अपने सैनिकों के पराक्रम पर गर्व है। नेबुआ के रहने वाले अमित श्रीवास्तव भी बताते हैँ कि आजादी के बाद से ही भारतीय सैनिकों ने सब जगह अपना लोहा मनवाया 1962 के युद्ध को हम छोड़ दें जहां ना सिर्फ हमारे साथ धोखा हुआ था बल्कि उस समय हमारे प्रधानमंत्री के सही समय पर निर्णय ना ले पाने के कारण हम हारे, उसके बाद 1965 और 1971 में हमारे सैनिकों ने दिखा दिया कि भारतीय सैनिक क्या कर सकते हैँ। हमें कारगिल भी नही भूलना चाहिए जहां दुश्मन देश ऊंचाई पर था उसके बाद भी भारतीय सैनिकों ने जीत हासिल की। 16 दिसंबर का दिन हमारे लिए गर्व की अनुभूति कराने वाला दिन है, हमें गर्व है अपने वीर सैनिकों पर,जय हिन्द।

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