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सोनभद्र: महज हो रहा सत्ता का हस्तांतरण, आज ये हैं तो कल वो रहेंगें

दैनिक बुद्ध का संदेश
आगामी चुनाव को लेकर होने लगी रोचक बतकही- मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी
सोनभद्र। उत्तर प्रदेश में आगामी 2022 में संभावित चुनाव को लेकर अब गाँव-गिराव में रोचक राजनीतिक बतकही चौपालों में होनी शुरू हो गई है टीवी चौनलों पर बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों, राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं, एंकरों, चुनाव विश्लेषकों की बातें अटकलें तो जग जाहिर है।

क्रांतिकारी एवं ऐतिहासिक 9 अगस्त की पूर्व संध्या पर रविवार को हमारे विशेष संवाददाता की सोनांचल के सदर ब्लॉक बभनौली कला गाँव के दो ऐसे पुरनियों से मुलाकात हुई जिन्होंने बचपन में ब्रिटिश शासन, किशोर वय में स्वतंत्र भारत की कांग्रेसी हुकूमत और जनतादल, बीकेडी जनता पार्टी, सपा, बसपा और भाजपा के शासन को देखा ही नहीं बल्क उसके खट्टे मीठे अनुभव भी संजो कर रखें है। इतना ही नहीं अपने दादा परदादा की स्मृतियों पर आधारित मुगल शासनकाल की बातों को सुना है। ऐसे ही 90 प्लस के दो वरिष्ठ नागरिक लोक भाषा मे जो बतकही किए उसे आप सब की सुविधा के लिए खड़ी बोली में परोसा जाये तो समझने में आसानी होगी। रामललित तकरीबन 95 सावन की बहार देख चुके राम ललित उर्फ बहादुर पांड़ेय कहते है, मुगलों से सत्ता हस्तांतरण हुआ तो अंग्रेज सत्ता में आए। अंग्रजो से सत्ता राजे रजवाड़ो के पास आई। सरदार बल्लभ भाई पटेल के कारण देश की 667 रियासतों की सत्ता कांग्रेस के पास आई। इस बीच सत्ता का तो हस्तांतरण होता रहा लेकिन जो आम आदमी का सपना था वह आंशिक रूप से ही पूरा हो पाया है। आज भी आम आदमी केवल नेताओं और नौकर शाहों की मर्जी पर है। जनतंत्र में कुलीन तंत्र की तरह राजनीतिक व्यवस्था है। पार्टी का नेतृत्व वंश के आधार पर पूरे देश में है। क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों में केवल दो दल अपवाद है। बदलाव सत्ता का हो रहा, सिस्टम, तंत्र ढंग सब जस का तस साबित दस्तूर है। सुखदेव गुप्ता लगभग 93 सावन देख चुके अंग्रेजों की बेगारी कर चुके है सुखदेव गुप्ता के पिता जी जो 1954 में पण्डित जवाहलाल नेहरू के चुर्क की सभा में अपने मित्र झोलई, मोलई के साथ पैदल गए थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बृज भूषण मिश्र ग्रामवासी ने खिचड़ी खिलवाई थी। कहते है नौकर ही मालिक बन गए है। मालिक तो नौकर की इच्छा और उसके विवेक पर निर्भर है। दास मलूका कह गए सब कुछ करें क्लर्क। न विधायक, न सांसद, न जिला पँचायत अध्यक्ष, न ब्लॉक प्रमुख और न प्रधान। सब अधिकारी जो मन में आ रहा है किंतु-परन्तु चूंकि-इसलिए लगाकर इसमे न उसमे माघ में न पूस में करते रहते है। यही देखते देखते आज बुढौती आ गई, चिता पर अब पाँव पड़ने के कगार पर है। चाहे जो सत्ता में आए बाबू लोग तो यहीं रहेंगे। बहुत हुआ तो न यहाँ रहेंगे, वहाँ रहेंगे। उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा। कुछ भी करंगे जांच होगी जो आजीवन चलती रहेगी। मुकदमा पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहा है। भूमि नापी के लिए दौड़ के लेखपाल के पास, दौड़ के कानून -गो के पास, दौड़ के तहसीलदार के पास तो दौड़ के परगना हाकिम के पास हमारे मंगरु भैया सर्गे चले गए लेकिन कोला पर कब्जा हो गया तो हो गया। सरकार कोई रहे काम का ढंग एक तरह का है। आज ए है तो कल वे रहेंगे।

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