हरी खाद खेत के लिए संजीवनी: डॉ. शेष नारायण सिंह
किसान पराली को खेत ना जलाएं, मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाएं

भनवापुर। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, सोहना, सिद्धार्थनगर के कृषि प्रसार वैज्ञानिक डॉ शेष नारायण सिंह बताया की यदि किसान भाई अपने खेत में हरी खाद का प्रयोग करते हैं तो उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण में सुधार होगा तथा उत्पादन लागत भी कम लगती है और मिट्टी की संरचना एवं जलधारण क्षमता मैं सुधार होता है। मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्म जीव की संख्या भी बढ़ती है । हरी खाद का प्रयोग खेत में एक संजीवनी बूटी के तरीके काम करती है । हरी खाद उस फसल को कहते हैं, जिससे मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदार्थों की पूर्ति करने के लिए उगाई जाती है । मई एवं जून महीना ढैचा और सनई जैसे हरी खाद की बुवाई की जाती है। इस समय खेत में ढैचा या फिर सनई लगा देने से किसानों को अगली फसल के लिए हरी खाद मिल जाती है। इसकी जड़ों में राइजोबियम नाम का जीवाणु होता है। जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाता है। ढैचा एक दलहनी फसल है। यह सभी प्रकार के जलवायु और मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। यह फसल 1 सप्ताह में 60 सेंटीमीटर तक जलभराव को भी सहन कर लेती है। अंकुरित होने के बाद यह सूखे को भी सहन करने की क्षमता रखती है, यह छारीय और लवणीय मृदाओ में भी अच्छी तरह से पैदा हो जाती है। बुवाई के 45 से 50 दिन में 20 से 25 टन हरी खाद जिससे लगभग 85 से 120 किलो तक नाइट्रोजन मिल जाता है । धान रोपाई से पहले ढैचा को पलटने से खरपतवार भी नष्ट हो जाते हैं। वहीं अगर हम सनई की बात करें तो यह अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी के लिए सबसे सही हरी खाद की फसल होती है । इसकी बुवाई का भी समय मई से जून तक या बारिश शुरू होने के बाद की जा सकती है। यह जल्दी विकसित होने वाली फसल होती है । यह खरपतवार को भी नष्ट कर देती है। बुवाई से 45 से 50 दिन के बाद इसको खेत में पलट देते हैं। इसकी फसल 1 हेक्टेयर में लगभग 20 से 30 टन तक हरी खाद मिल जाती है। ढैचा की उन्नतशील किस्में नरेंद्र ढैचा एक, पंत ढैचा एक तथा सनई की अंकुर, स्वास्तिक और शैलेश मुख्य किस्में है । ढैचा की बुवाई के लिए 1 हेक्टेयर में हरी खाद के लिए 40 से 50 किलो बीज की मात्रा की जरूरत पड़ती है। वही सनई की बीज की मात्रा 80 से 90 किलो प्रति हेक्टेयर बुवाई किया जाता है, जबकि दोनों की मिश्रित बुवाई करनी है । उस अवस्था में 45 से 60 किलो बीज प्रति हेक्टेयर आवश्यकता पड़ती है । हरी खाद एक अच्छा माध्यम बन सकता है, किसानों के जैविक खेती करने के लिए।