मोतीगंज : विष्णु की स्तुति पर यहां अवतरित होकर मां बाराही करती हैं भक्तों का कल्याण,देखिए अद्भुद श्रृंगार
दैनिक बुद्ध का संदेश
मोतीगंज,गोण्डा। जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी दक्षिण पश्चिम कोने पर प्रसिद्ध सुखनई नदी के पवित्र तट पर मुकुंदपुर गांव में अवतरित वाराही देवी आज भी भक्तों का कल्याण करती हैं। यहां शारदीय व चौत्र नवरात्र में भक्तों की अपार भीड़ देखने को मिलती है। देश के कोने-कोने से लोग यहां मन्नते मांगने व दर्शन हेतु आते हैं।
मां वाराही देवी जो यहाँ उत्तरी भवानी के नाम से भी सुविख्यात हैं के दरबार में लगा एक पौराणिक विशालकाय बरगद का वृक्ष इस मंदिर की प्राचीनता और विशालता का साक्षात गवाह है, जिसकी शाखाएं मन्दिर के चारों तरफ फैली हुई हैं। मान्यता है कि इस प्राचीन बरगद से निकलने वाले दूध और माता भगवती को चढ़ाए जाने वाली नीर से नेत्रों की सभी व्याधियाँ स्वतः दूर हो जाती हैं। इस पौराणिक व विशेष मान्यता के चलते आंख की बीमारियों से परेशान तमाम लोग यहाँ आकर मन्नतें मांगते हैं और प्रतीकात्मक नेत्र चढ़ाकर माता भगवती से नेत्र की समस्त प्रकार की व्याधियों को दूर करने की विनती करते हैं। शारदीय नवरात्र के अलावा माह के प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को भी यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जाती है। पुराणों के अनुसार हिरण्याक्ष नामक राक्षस द्वारा पृथ्वी को चुरा लेने के बाद भगवान विष्णु की स्तुति पर जगत जननी मां वाराही देवी उत्तरी भवानी ने मुकुंदपुर स्थित सुखनई नदी के किनारे अवतरित होकर पृथ्वी का उद्धार किया तथा जगत कल्याण के लिए यहां विराजमान हो गई। वहीं मान्यताओं के अनुसार शक्तिपीठ रूप के रूप में सुविख्यात मां वाराही देवी स्थल पर सती का जबड़ा गिरने की भी मान्यता है जिससे मंदिर का महत्व और अधिक बढ़ गया। मन्दिर में एक सुरंग पाताल की तरफ गयी है, उस सुरंग में माता भगवती की अखण्ड ज्योति हमेशा जलती रहती है। शारदीय नवरात्र के पहले दिन बुधवार को यहां भक्तों की अपार भीड़ देखी गई,भक्तजन मां की एक झलक पाने के लिए बेताब दिखे, लोगों ने काफी दूर तक कतार बद्ध होकर दर्शन किये तथा मन्नते मांगी। मोतीगंज गोण्डा-जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी दक्षिण पश्चिम कोने पर प्रसिद्ध सुखनई नदी के पवित्र तट पर मुकुंदपुर गांव में अवतरित वाराही देवी आज भी भक्तों का कल्याण करती हैं। यहां शारदीय व चौत्र नवरात्र में भक्तों की अपार भीड़ देखने को मिलती है। देश के कोने-कोने से लोग यहां मन्नते मांगने व दर्शन हेतु आते हैं। मां वाराही देवी जो यहाँ उत्तरी भवानी के नाम से भी सुविख्यात हैं के दरबार में लगा एक पौराणिक विशालकाय बरगद का वृक्ष इस मंदिर की प्राचीनता और विशालता का साक्षात गवाह है, जिसकी शाखाएं मन्दिर के चारों तरफ फैली हुई हैं। मान्यता है कि इस प्राचीन बरगद से निकलने वाले दूध और माता भगवती को चढ़ाए जाने वाली नीर से नेत्रों की सभी व्याधियाँ स्वतः दूर हो जाती हैं। इस पौराणिक व विशेष मान्यता के चलते आंख की बीमारियों से परेशान तमाम लोग यहाँ आकर मन्नतें मांगते हैं और प्रतीकात्मक नेत्र चढ़ाकर माता भगवती से नेत्र की समस्त प्रकार की व्याधियों को दूर करने की विनती करते हैं। शारदीय नवरात्र के अलावा माह के प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को भी यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जाती है। पुराणों के अनुसार हिरण्याक्ष नामक राक्षस द्वारा पृथ्वी को चुरा लेने के बाद भगवान विष्णु की स्तुति पर जगत जननी मां वाराही देवी उत्तरी भवानी ने मुकुंदपुर स्थित सुखनई नदी के किनारे अवतरित होकर पृथ्वी का उद्धार किया तथा जगत कल्याण के लिए यहां विराजमान हो गई। वहीं मान्यताओं के अनुसार शक्तिपीठ रूप के रूप में सुविख्यात मां वाराही देवी स्थल पर सती का जबड़ा गिरने की भी मान्यता है जिससे मंदिर का महत्व और अधिक बढ़ गया। मन्दिर में एक सुरंग पाताल की तरफ गयी है,उस सुरंग में माता भगवती की अखण्ड ज्योति हमेशा जलती रहती है। शारदीय नवरात्र के पहले दिन बुधवार को यहां भक्तों की अपार भीड़ देखी गई, भक्तजन मां की एक झलक पाने के लिए बेताब दिखे, लोगों ने काफी दूर तक कतार बद्ध होकर दर्शन किये तथा मन्नते मांगी।