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सिद्धार्थनगर : चंद्रमौली सिंह श्रीनेत ने चिकित्सा के क्षेत्र में जनपद का नाम किया रोशन

दैनिक बुद्ध का संदेश
चिल्हियां/सिद्धार्थनगर। सच ही कहा गया है कि यदि आप में लगन हो तो आप किसी भी मंजिल पर पहुंच सकते हैं। ऐसा ही कुछ कारनामा जिले के ग्राम महदेवा के रहने वाले चंद्रमौली सिंह श्रीनेत ने करके दिखाया है। एक मध्यम वर्गीय परिवार से सम्बन्ध रखने वाले चंद्रमौली सिंह ने रूस जाकर 6 वर्षों तक मेडिकल की पढ़ाई की और आज रूस के प्रतिष्ठित संस्थान से एक डाक्टर की डिग्री लेकर वापस लौटे हैं। आपको बता दें कि चिल्हियां रेलवे स्टेशन के समीप शिवनगर उदयराजगंज के विजडम वे इन्टर कालेज में कक्षा 12 तक की पढ़ाई करने के बाद विदेश के रूस शहर के कजान मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस की पढ़ाई की। साथ ही (एफएमजीई) एमसीआई, जून 2024 भी पास किया है। भले ही इस दौर में मेडिकल की डिग्री हासिल करना चर्चा का विषय ना हो, लेकिन जब एक मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का विदेश में जाकर, जहां की भाषा भी उसे ठीक से ना आती हो, ऐसी कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए ऐसी उपलब्धि हासिल करना चर्चा का विषय बन जाता है। वहीं चंद्रमौली सिंह के पिता संजय सिंह श्रीनेत का कहना है कि अपने बच्चों को एक अनजान देश भेजना और 6 वर्षों तक उसका इंतेजार करना इतना आसान नहीं था। उनकी माता अन्जू सिंह ने बताया कि आज अपने बेटे की इस उपलब्धि पर मुझे इतना गर्व महसूस हो रहा है, जिसे शब्दों में कहना आसान नहीं है।

इसका श्रेय मैं अपने बेटे की मेहनत, लगन, परिश्रम को दूंगी, जिसने हर कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए यह मुकाम हासिल किया है। चंद्रमौली सिंह श्रीनेत ने बताया कि (एफएमजीई) एमसीआई यानी फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम (मेडिकल काउन्सिल ऑफ़ इंडिया) की पढ़ाई के बारें में कहूं तो यह टास्क बहुत मुश्किल होता है। खास कर उन परिस्थितियों में जब आप अपने देश से बाहर पढ़ाई कर रहे हो, जहां आपको सबसे अधिक भाषा की परेशानी रहती है। लेकिन मेरा सपना था कि मैं यह टास्क पूरा करूंगा। उन्होंने कहा कि इस कामयाबी में मेरे माता-पिता तथा मेरे बड़े पिताजी अरविन्द सिंह का भी बहुत बड़ा योगदान है। मेरे परिवार ने मेरा हर कदम पर साथ दिया है, मेरा हौसला बढ़ाया। जिसकी वजह से ही मैं इस मुकाम तक पहुंचा हूं। चंद्रमौली सिंह श्रीनेत के इस कामयाबी से चिल्हिया क्षेत्र में और वहां के लोगों में हर्ष व्याप्त है। जिसने अपने माता-पिता एवं परिवार के साथ-साथ इस पिछड़े क्षेत्र का नाम विदेश में जाकर भी ऊंचा किया है।

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