सिद्धार्थनगर : बीआईएस मानक को दर किनार कर तहसील क्षेत्र में है पांच दर्जन आर ओ प्लांट
अधिकांश के पास नहीं है रीवर सेवल
दैनिक बुद्ध का सन्देश
बांसी/सिद्धार्थनगर। लघु कुटीर उद्योग के नाम पर तहसील क्षेत्र में लगभग पांच दर्जन आरो प्लांट लगे हैं और संचालित भी हैं। सभी प्लांट का संचालन लगभग 5 घंटा प्रतिदिन होता है ।सभी प्लांट की उत्पादन क्षमता 1000 लीटर प्रति घंटा है। वी आई एस मानक पर संचालित प्लांट का पंजीकरण कराया जाना तो दूर की बात है अधिकांश संचालको को वी आई एस की जानकारी तक नहीं है ।इस व्यवसाय में टीडीएस मानक की भी जमकर अनदेखी हो रही है। निर्धारित मात्रा में डोजर का प्रयोग कर पानी को मिनरल युक्त भी नहीं किया जाता है। ऐसे में बाजारों में बेचे जा रहे स्वच्छीकृत पानी का उपयोग लोगों को कमजोर भी बना रहा है। लोग दुकानों या दफ्तरों में इसका उपयोग भी कर रहे हैं ।कुछ को छोड़कर सभी प्लांट रिवर्सिबल बोर का उपयोग न कर प्रति घंटे 500 लीटर भूगर्भीय जल व्यर्थ में बाहर रहे हैं ।सूत्रों की माने तो यदि कुछ प्लांट पंजीकृत भी हैं तो मात्र प्रदूषण विभाग में। नगर के सुभाष नगर में दो।
मंगल बाजार में एक, मंगल बाज़ार तिराहा पर एक, पंतनगर में एक, टेकधेर नगर मे दो नरकटहा में एक प्लांट, व तहसील क्षेत्र के बेलोहा में दो, सरवा बर्नवारे में एक तिलोरा में एक पचपेड़वा में एक, गोहर में एक, सकारपार में दो, टिकर में एक, नासीरगंज में दो कुर्तियां में दो, पथरा बाजार में दो, चेतिया उत्तरी में दो, चेतिया दक्षिणी में एक, मऊ दक्षिणी में एक, सहित कुल पांच दर्जन आरओ प्लांट स्थापित वा संचालित हैं। इनके द्वारा बेचा जाने वाला पानी शायद ही मानकों के अनुरूप है। टीडीएस भी 80 से 100 के सापेक्ष काफी कम होता है इसके अलावा अधिकांश संयंत्र संचालक दोगल का उपयोग या तो ना के बराबर करते हैं या फिर करते ही नहीं है।ऐसी स्थिति में उक्त प्लांट से भूगर्भीय जल का दोहन कर उत्पादित स्वच्छ पेयजल में आवश्यक मिनरल की भी कमी होती है मिनरल की मात्रा बहुतायत में शून्य प्राय भी रहती है। इन प्लांट की मानक विहीन पेयजल का प्रयोग मानव शरीर को अशक्त ही बनाएगी।
मजे की बात है कि प्रशासन की दृष्टि उक्त गंभीर संदर्भ पर अब तक पड़ी ही नहीं। इतना ही नहीं तहसील क्षेत्र में प्रतिदिन विक्रय हेतु लगभग 3 लाख लीटर पानी का औसत उत्पादन उक्त प्लांटों द्वारा किया जा रहा है ठीक इसी अनुपात डेढ़ लाख लीटर वेस्टेज भूगर्भीय जल रिवर्स सेबल का उपयोग न कर बेकार में बहाया जा रहा है। उक्त व्यवसाय से जुड़े अधिकांश व्यवसाईयों को मानकों का पंजीयन प्रक्रिया का ज्ञान भी नहीं है ।मामूली कमाई वाले उक्त व्यवसाय से लोगों के जुड़ने का सिलसिला बढ़ते क्रम में है ।जानकारों का अनुमान है कि यदि जनपद स्तर पर ध्यान दिया जाए तो यही संख्या जनपद के अन्य चार तहसीलों में भी है और उक्त क्रम में ही भूगर्भीय जल की बर्बादी हो रही है तथा जानकारी के अभाव में लोग तत्वहीन पेयजल का उपयोग कर रहे हैं। उक्त बाबत संपर्क करने पर जिलाधिकारी पवन अग्रवाल ने कहा कि वह इसे गंभीरता से लेते हुए इसकी जांच कराएंगे।