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भोजपुरी गानों में अश्लीलता कहां तक है जायज

दैनिक बुद्ध का संदेश
प्राचीन काल से भोजपुरी भाषा का एक समृद्ध इतिहास रहा है भोजपुरी भाषा का इतिहास सातवीं सदी से शुरू होता है,मध्य काल में भोजपुर नामक एक स्थान में मध्य प्रदेश के उज्जैन से आए भोजवंशी राजाओं ने एक गाँव बसाया था। इसे उन्होंने राजधानी बनाया और इसके राजा भोज के कारण इस स्थान का नाम भोजपुर पड़ गया। इसी नाम के कारण यहाँ बोले जाने वाली भाषा का नाम भी भोजपुरी पड़ गया। जिस तरह से समय बीतता गया उसी तरह से दिन-प्रतिदिन भोजपुरी गानों में गिरावट देखने को मिलता गया।

गाने समाज का आईना कहे जाते हैं। ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि भारतीय समाज एक विचित्र सा समाज हो गया है जो सही बातों को जल्दी स्वीकार नहीं करता, लेकिन गलत बात उसके मन मस्तिष्क में जल्दी घर कर जाते हैं। यही हाल भोजपुरी गानों का भी है, यहां पर तो सभ्य गानों को कोई खास तवज्जो नहीं मिलती लेकिन समाज में न सुने जा सकने वाले असभ्य गाने अपना व्यापार करोड़ों में कर लेते हैं। पूंजीवादी व्यस्था समाज पर इतनी हावी हो गई है कि न चाहते हुए भी कुछ कलाकार ज्यादा पैसे कमाने की लालच में असभ्य गाने गा रहे हैं। साठ,सत्तर के दशक की बात करें तो भिखारी ठाकुर जैसे लोक गायकों ने सुंदर और सभ्य भाषा में लोकगीत गाकर भोजपुरी गानों का एक मानक मापदंड स्थापित किया था, तो वहीं आज के समय में भरत व्यास और शारदा सिन्हा जैसे लोक गायक भी हैं जो प्राचीन भोजपुरी गानों की सभ्यता को बचाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह कहने में जरा भी संकोच नहीं होगा कि नब्बे के दशक से भोजपुरी गानों का जितना क्षय होता आ रहा है वह निश्चित रूप से चिंतनीय है। आज के नए जमाने के कलाकारों ने जितनी फूहड़ता, अश्लीलता भोजपुरी गानों में फैलायी है वह कत्तई स्वीकार्य नहीं है। आज हम घर में परिवार के साथ बैठकर भोजपुरी गानों को सुनने में शर्म महसूस करते हैं। सामाजिक मूल्यों का इतना क्षय क्यूं हो रहा है ? इस प्रश्न का उत्तर खोजना पड़ेगा, आज नैतिक मूल्य इतने कमजोर हो गए हैं कि उन्हें गलत सही का भान ही नहीं रह गया है। लोकगीतों की हमारे यहाँ समृद्ध परंपरा रही है और अवधी, बृजभाषा या भोजपुरी के गीतों की धूम रही है जिनमें एक से बढ़कर एक गीत जीवन के हर मोड़ पर सुनने को मिल जाते हैं, बिरह से लेकर मिलन तक,यहाँ तक कि मौसम के हिसाब से भी लोकगीत है जैसे होली, चौती और कजली अगर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि देश के आप किसी कोने में चले जाए तो तरह तरह के लोकगीतों की भरमार है और इनके गाने वाले भी इनको खूब प्रसन्नतापूर्वक गाते है। इन सब को देखते हुए इन अश्लील गीतों का हर तरफ छा जाना हमारे लिए चिंता की बात होनी चाहिए। आप आंचलिक क्षेत्रो में किसी भी गानों की दुकान पर जाएं तो वहां आपको एक भी ढंग के गानों का कैसेट नहीं मिलेगा लेकिन वहीं पर ऐसे असभ्य गानों की हजारों कैसेटें मिल जायेंगी। गानों में अश्लीलता को बढ़ावा देने से रोकने के लिए सभ्य समाज को आगे आकर एक जन आंदोलन करना पड़ेगा। तभी जाकर समाज में इस तरह के अश्लील गानों पर रोक लगेगी।

 

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