गोंडा : ट्रांसफर के भी बाद रिलीव ना करने का चल रहा खेल
थानेदार व चौकी प्रभारी नहीं छोड़ रहे कुर्सी का मोह
दैनिक बुद्ध का संदेश
गोंडा। जनपद में प्रशासनिक व्यवस्था किस अंदाज में चलती है यह इस बात से समझा जा सकता है कि डीआईजी देवीपाटन मंडल गोंडा के आदेश को भी विभाग के अफसर नहीं मान रहे हैं। पुलिस विभाग में जनता की शिकायतों को दबाना तो आम बात है,लेकिन अब उच्चाधिकारियों के आदेश भी अधीनस्थ दबाकर बैठ जाते हैं। जिले मे ट्रांसफर के बाद रिलीव नहीं करने का जमकर खेल चल रहा है। यहां ट्रांसफर के एक माह बीतने के बाद भी इंस्पेक्टर व चौकी प्रभारी तक अपनी कुर्सी का मोह नहीं छोड़ रहे हैं। डीआईजी के द्वारा बीते जून माह में स्थानांतरण आदेश के एक महीने बीतने को हैं फिर भी इंस्पेक्टर और थाने, चौकी के प्रभारी जमे हुए हैं और उन्हें अभी तक रिलीव नही किया गया है। यही नहीं तबादले को दरकिनार कर गैर जनपद भेजे गए एक उपनिरीक्षक सर्वजीत गुप्ता तत्कालीन एसओजी प्रभारी को फिर से इसी जिले के ही खोड़ारे थाने में तैनाती दे दी गई है। बता दें कि बीते 29 जून 2024 को डीआईजी देवीपाटन मंडल ने बड़ी कार्यवाही करते हुए लम्बे अरसे से एक जगह जमे एसओजी प्रभारी गोंडा सर्वजीत गुप्ता, सर्विलांस सेल प्रभारी सादाब आलम, चौकी प्रभारी कस्बा कर्नलगंज आशीष कुमार व मनोज कुमार रॉय तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक थाना नवाबगंज सहित 88 उपनिरीक्षकों का तबादला कर गैर जनपद में तैनाती का फरमान जारी किया था।
इसी के साथ ही उक्त स्थानान्तरित कर्मियों को रवाना कर अनुपालन आख्या 07 दिवस में उनके कार्यालय को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। जिसका अनुपालन अभी तक ना करके तबादले के बावजूद उपनिरीक्षकों को रिलीव नहीं किया गया है। जिससे उक्त उपनिरीक्षक अभी भी अपने पूर्व तैनाती स्थल पर जमे हुए हैं। इससे डीआईजी का तबादला आदेश भी हवा हवाई साबित हो रहा है और डीआईजी के आदेश पर भी एसपी भारी पड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की नई तबादला नीति 2024- 25 के तहत ऐसे कर्मचारी जो जिले में 3 साल, मंडल में 7 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं,उन्हें ट्रांसफर की कैटेगरी में शामिल किया गया है। यह अवधि गुजर जाने के बाद इंस्पेक्टर और थानेदार को सरकार के स्थानांतरण आदेश से तय जगहों पर जाना ही होता है। इसके पीछे सरकार का उद्देश्य सरकारी काम में पारदर्शिता लाना है लेकिन पुलिस विभागों में ऐसा नहीं होता। सरकार के आदेश की उन्हीं के अफसर अनदेखी कर रहे हैं। ऐसा अक्सर दो कारणों से होता है। यदि सरकार के तबादला आदेश के बाद कोई अधिकारी कोर्ट से स्टे नहीं लिया है तब भी वह अपने अपने पद पर जमा है। इसका सीधा सा मतलब यही होता है उसने अपने उच्च अधिकारी से सेटिंग कर ली है। इसी वजह से वह विभाग से रिलीव नहीं हो रहा है। दूसरा यह होता है कि वह रिलीव तो हो गया लेकिन तबादला के बाद तय जगह पर उसने ज्वाइनिंग नहीं ली। सब कुछ जानकर ध्यान देने को जिले के आला अधिकारी तैयार नहीं है। इसके कारण मनमानी जारी है। लोग जिम्मेदारों पर मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार जिम्मेदार आला अधिकारियों की आपसी मिलीभगत से उक्त उपनिरीक्षकों को तबादले के बाद भी रिलीव ना करने से उक्त उपनिरीक्षक अभी भी अपने पूर्व तैनाती स्थल पर जमे हुए हैं। इससे डीआईजी का तबादला आदेश भी हवा हवाई साबित हो रहा है।