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शिक्षक दिवस पर विशेष—- अजब थे धुन के पक्के लोग …

अजब थे धुन के पक्के लोग …
कभी कहते थे उल्लू तो कभी मुर्गा बनाते थे,
गधों को भी बड़ी मेहनत से वो इंसां बनाते थे ॥
पढ़ाने की ललक थी मोलवी साहब में कुछ ऐसी,
कि घर से टांग कर बच्चों को मकतब में वो लाते थे ॥
बड़ी सी इक छड़ी लेकर निकलते जब भी मुंशी जी,
शरारत करने वाले सारे बच्चे कांप जाते थे ॥
पहाड़ा सबसे सुनते रोज बहिरू मास्टर साहब,
मगर हम सबको अक्सर वो कहानी भी सुनाते थे ॥
न महंगी फीस की लालच, न ट्यूशन की कोई टेंशन !
अजब थे धुन के पक्के लोग, धुन – धुन कर पढ़ाते थे.

……………………रचनाकार– नियाज कपिलवस्तुवी,सिद्धार्थनगर

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